2015 में लालू से हाथ मिलाने के बावजूद प्रशांत किशोर ने नीतीश की शख्सियत को धुरि बनाते हुए चुनावी रणनीति बनाई. मोदी लहर के बावजूद भारी जीत हासिल होने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया लेकिन जल्दी ही पीके ने बिहार को अलविदा कह दिया. दोनो दूर तो हुए लेकिन निजी रिश्तों में गर्माहट हमेशा बरकरार रही.
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